गया में पिंडदान क्यों होता है? इसका महत्व क्या है?

पितृपक्ष के प्रारंभ होते ही बिहार के गया में फल्गु नदी के तट सहित विभिन्न वेदियों पर हजारों श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं। यह परंपरा बहुत पुरानी है और माना जाता है कि पिंडदान से पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति मिलती है।
गया में पिंडदान का विशेष महत्व
हालांकि देश के कई स्थानों पर पिंडदान और तर्पण किया जाता है, फिर भी गया को इस कार्य के लिए सर्वोत्तम माना गया है। हिंदू धर्म में पितृपक्ष को शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है, लेकिन इस अवधि में किए गए श्राद्ध और पिंडदान का बहुत बड़ा महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि गया में किए गए पिंडदान से पूर्वजों की सोलह पीढ़ियों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है।
श्राद्ध और मोक्ष का संबंध
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाला यह समय ‘महालया पक्ष’ कहलाता है। पिंडदान को मोक्ष प्राप्ति का सरल और सहज मार्ग माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम और सीता जी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था।
गया में पिंडदान की विधि
गयावाल तीर्थव्रती सुधारिणी सभा के अध्यक्ष गजाधर लाल के अनुसार, महाभारत में फल्गु तीर्थ में स्नान करके श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को पितृऋण से मुक्ति मिलती है। गया में पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज मुख्य कार्य होते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध के कर्मकांड की विधि अलग-अलग होती है, जो एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन या सत्रह दिन तक चल सकते हैं।
गया — मोक्ष की भूमि
गया को विष्णु का नगर और मोक्ष की भूमि माना गया है। विष्णु पुराण और वायु पुराण में इसका उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष और स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसी कारण इसे ‘पितृ तीर्थ’ भी कहा जाता है।
गया के गयापाल पंडा मनीलाल बारीक बताते हैं कि पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से शुरू होती है और फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किए बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है।
गया की पवित्रता का पौराणिक कारण
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, गयासुर नामक राक्षस ने ब्रह्मा से वरदान मांगा था कि उसके दर्शन मात्र से लोग पापमुक्त हो जाएं। इससे स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी और पाप की प्रवृत्ति भी बढ़ी। देवताओं ने इसे रोकने के लिए गयासुर से यज्ञ के लिए पवित्र स्थल मांगा, जिसके कारण गयासुर का शरीर पांच कोस क्षेत्र में फैल गया और यही क्षेत्र आगे चलकर गया बना। गयासुर ने देवताओं से वरदान लिया कि यह स्थान लोगों को मुक्त करने वाला बने।
गया की वेदियां और उनका महत्व
पहले गया में लगभग 360 वेदियां थीं जहाँ पिंडदान किया जाता था, लेकिन आज केवल 48 वेदियां बची हैं। श्रद्धालु इन्हीं वेदियों पर पिंडदान और तर्पण करते हैं। विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान का विशेष महत्व है।
अन्य तीर्थस्थलों के बीच गया की श्रेष्ठता
देश के अन्य पवित्र स्थलों जैसे हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर, बद्रीनाथ आदि के बीच गया का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि गया की ओर चलने वाले प्रत्येक कदम से पितरों के स्वर्गारोहण के लिए सीढ़ियां बनती हैं।