गया में क्यों करते हैं श्राद्ध? जानिए इसके 5 प्रमुख कारण

भारत में पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध और पिंडदान की परंपरा सदियों पुरानी है। हालांकि देश में कई जगहों पर पिंडदान किया जाता है, लेकिन बिहार का गया धाम इस धार्मिक अनुष्ठान का सबसे पवित्र और विशेष केंद्र माना गया है।
यहाँ पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और संतान पितृ ऋण से मुक्त हो जाती है। गया के इस महत्व के पीछे कई पौराणिक और धार्मिक कारण हैं, जो इसे अन्य स्थलों से विशिष्ट बनाते हैं।
आइए जानते हैं गया में श्राद्ध करने के 5 प्रमुख कारण:
1. गयासुर की पौराणिक कथा और उसका पवित्र शरीर
गया के पौराणिक इतिहास के अनुसार, गयासुर नामक एक असुर ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर वरदान माँगा था कि उसके शरीर के दर्शन मात्र से लोग पापमुक्त हो जाएं।
यह वरदान पाकर लोग निर्भय होकर पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से बार-बार मुक्त हो जाते थे।
इससे चिंतित होकर देवताओं ने यज्ञ के लिए गयासुर से भूमि मांगी। गयासुर ने अपना शरीर ही समर्पित कर दिया, जो पाँच कोस में फैला हुआ था।
आज का गया क्षेत्र इसी पवित्र देह पर स्थित है।
इस घटना के कारण यह भूमि पापों से मुक्ति दिलाने वाली बन गई और श्राद्ध कर्म के लिए सर्वोत्तम स्थल मानी गई।
2. गयासुर के वरदान से बना मोक्ष का स्थान
गयासुर का देह समर्पण के बाद भी उसकी इच्छा थी कि यह भूमि लोगों को तारने वाली बनी रहे।
इसलिए उसने एक और वरदान माँगा कि जो व्यक्ति यहां पिंडदान और श्राद्ध करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति हो।
देवताओं ने यह वरदान स्वीकार कर लिया और तब से गया को मृतकों की आत्मा के उद्धार का स्थान मान लिया गया।
इसलिए आज भी लोग गया आकर अपने पितरों का तर्पण करते हैं ताकि उन्हें मोक्ष मिल सके।
3. गया में पिंडदान के बाद श्राद्ध की अंतिम क्रिया
धार्मिक परंपरा के अनुसार, किसी भी मृतक के निधन के तीसरे वर्ष में गया में पिंडदान करना अनिवार्य माना जाता है।
गया में जब अंतिम बार पिंडदान कर दिया जाता है तो फिर उस पूर्वज के नाम से श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती।
गया में पिंडदान के बाद अंतिम श्राद्ध बद्रीकाश्रम के ब्रह्मकपाली क्षेत्र में होता है।
इस प्रक्रिया को आत्मा की अंतिम विदाई माना जाता है।
4. विष्णु भगवान का पितृदेव के रूप में विराजमान होना
गया क्षेत्र में भगवान विष्णु स्वयं गदाधर रूप में पितृदेव के रूप में विराजमान हैं।
यहाँ विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के पदचिह्न आज भी देखे जा सकते हैं, जो उस स्थान की पवित्रता और महत्व को दर्शाते हैं।
गयासुर के शरीर रूपी शिला पर भगवान विष्णु, ब्रह्मा, शिव और अन्य देवता विराजमान हैं।
इसलिए गया में किया गया श्राद्ध विशेष फलदायक और आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली माना जाता है।
5. पातकों से मुक्ति और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति
पुराणों के अनुसार, चार स्थान ऐसे हैं जो मोक्ष प्रदान करते हैं –
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ब्रह्मज्ञान
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गया में श्राद्ध
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गोशाला में मृत्यु
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कुरुक्षेत्र में निवास
गया में पिंडदान करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्णचोरी, गुरुपत्नीगमन और अन्य महापातक (घोर पाप) भी नष्ट हो जाते हैं।
इसलिए गया को पापों की क्षमा और आत्मा की शुद्धि का केंद्र माना गया है।
निष्कर्ष
गया में श्राद्ध केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह पितरों की आत्मा के उद्धार और संतान के पितृ ऋण से मुक्ति का श्रेष्ठ मार्ग है।
यह भूमि केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि विश्वभर के हिन्दुओं के लिए आध्यात्मिक मोक्ष का द्वार है।
गया में पिंडदान करने से न केवल सात पीढ़ियों का उद्धार होता है, बल्कि जीवित व्यक्ति के जीवन में भी सुख, समृद्धि और शांति आती है।