क्यों करते हैं महादेव की भस्म आरती?

क्यों करते हैं महादेव की भस्म आरती?

महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर कई जगहों पर भगवान शिव की पूजा-अर्चना होती है, लेकिन मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में की जाने वाली भस्म आरती विशेष महत्व रखती है। भस्म आरती की एक पुरानी और रहस्यमयी कथा जुड़ी हुई है जो इसे और भी पवित्र बनाती है।

भस्म आरती का रहस्य

पुराणों के अनुसार, उज्जैन में प्राचीन काल में महाराज चंद्रसेन शासन करते थे, जो भगवान शिव के परम भक्त थे। उस समय एक राक्षस रिपुदमन ने चंद्रसेन के महल पर हमला किया और राक्षस दूषण के जरिए वहां की जनता को कष्ट दिया। उज्जैन के लोगों ने भगवान शिव से मदद मांगी। भगवान शिव स्वयं वहां आए, राक्षस दूषण का संहार किया और उसकी राख से अपना श्रृंगार किया। तभी से महाकालेश्वर का नाम पड़ा और भस्म आरती की परंपरा शुरू हुई।

भस्म आरती की विधि

  • भस्म आरती सुबह लगभग चार बजे शुरू होती है, जिसका उद्देश्य भगवान शिव को जगाना माना जाता है।

  • भस्म बनाते समय कपिला गाय के कंडे, पीपल, पलाश, शमी और बेर के लकड़ियों को जलाया जाता है। इस दौरान मंत्रोच्चार किया जाता है।

  • इस राख को कपड़े से छाना जाता है और फिर भगवान शिव पर अर्पित किया जाता है।

नियम और परंपराएं

  • भस्म आरती के समय महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित है। जो महिलाएं मौजूद होती हैं, उन्हें साड़ी पहननी होती है और भस्म अर्पित करते समय अपना चेहरा घूंघट से ढकना होता है क्योंकि उस समय महादेव निराकार रूप में होते हैं।

  • पुरुषों के लिए भी नियम होते हैं; उन्हें सूती धोती पहननी अनिवार्य होती है।

  • आम व्यक्ति खुद भस्म अर्पित नहीं कर सकता, यह अधिकार केवल पुजारियों के पास होता है।

भस्म का तिलक लगाने का महत्व

महाशिवरात्रि पर भस्म का तिलक लगाने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं। यह तिलक उन्हें तनावमुक्त जीवन और खुशहाली प्रदान करता है। इसलिए भक्त बड़ी श्रद्धा और भक्ति भाव से भस्म का तिलक लगाते हैं।

संक्षेप में, भस्म आरती भगवान शिव को जगाने, उनकी महिमा का स्मरण करने और भक्तों के पापों के नाश के लिए की जाती है। यह प्राचीन परंपरा भक्तों को आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष की ओर अग्रसर करती है।