सारांश — भगवान को क्या पसंद है
भगवान की पसंद
भगवान को दिखावे वाली पूजा नहीं, बल्कि सच्चे भाव से किया गया सेवा और दान पसंद है। जरूरतमंद को दुत्कार देना, भगवान को नापसंद है। परोपकारी व्यक्ति भगवान की नजर में सबसे प्रिय होता है।
दान का महत्व
दान केवल धन का नहीं, समय, श्रम, सेवा, वाणी और संवेदना का भी होता है। सही व्यक्ति को सही भाव से दिया गया दान सबसे मूल्यवान होता है।
भिखारी की प्रेरणादायक कथा
एक भिखारी जब पूर्णिमा के दिन भीख मांगने गया, तो उसे नगर सेठ से दान मिलने की उम्मीद थी। लेकिन सेठ ने उलटे उससे दान मांगा। भिखारी ने अनमने मन से दो जौ के दाने दे दिए। शाम को उसकी झोली में वही दो दाने सोने के निकले। तब उसे एहसास हुआ कि दान देने से ही फल मिलता है, बचाकर रखने से नहीं।
मुख्य संदेश
हमेशा लेने की सोच रखने वाला व्यक्ति देना नहीं सीख पाता।
देने की आदत जीवन में बड़े बदलाव ला सकती है।
सुपात्र को दिया गया दान पुण्यकारी होता है।
दान से न केवल सांसारिक बल्कि आध्यात्मिक लाभ भी होता है।
मांगने वाला हमेशा झुका होता है, लेकिन देने वाला ऊंचा होता है।
जरूरतमंद की मदद करना ईश्वर की सच्ची पूजा है।
ग्रह दोष, जीवन की परेशानियाँ सेवा और दान से कम की जा सकती हैं।
मधुर वचन, सेवा, अन्नदान, जलदान, रक्तदान — सभी श्रेष्ठ दान हैं।
"देने से कोई छोटा नहीं होता।"
"जो दिया, वही लौटा; जो रोका, वह खो गया।"
"भगवान को देने का मतलब है उसके किसी प्राणी की सेवा करना।"
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